धीरे-धीरे बूढ़ा एक, चला जा रहा लाठी टेक ।झुकी कमर थी , उजले बाल और अटपटी लटपट चाल।
करने को उसका उपहास, कई मनचले
आए पास।
बूढ़े से बोले कुछ मोड़ बाबा! किसे रहे हो ! ढूंढ?
क्या कुछ खोया है सामान ,
जिसका करते हो संधान।
किये भूमि की ओर निगाह, झुके झुके क्यों चलते राह।
फिर हंस कर बोले वे मूढ़ ,हमें बताओ हम दें ढूंढ ।
क्या कोई खोया है रत्न, जिसे ढूंढने का यह यत्न।
सुन युवकों के टेढ़े बोल, बूढ़ा बोला बात टटोल,
ओ प्यारे बच्चों अनजान खोया यौवन रत्न न पास,
तुम सब जैसा वीर जवान, मैं भी कभी रहा बलवान ।
अब वह यौवन – रत्न न पास,बना बुढ़ापे का मैं दास।
क्या तुम उसको सकते ढूंढ ,
इतना सुन झेंपे वे मूढ़, जीवन में रखिए यह ध्यान सब दिन होते नहीं समान।