मानव पशुओं से भिन्न है क्योंकि उसका कारण है मनुष्य में उनकी बुद्धि व जीवन जीने की शैली जीवन तो पशु भी जीते हैं लेकिन मनुष्य को सही_ गलत अच्छा_ बुरा आदि की समझ है। परंतु अब तो देखने में आ रहा है देश हो या समाज मनुष्य असभ्य होता जा रहा है। जहां हमारे देश में घर परिवार में माता-पिता ,गुरुवर बड़ों का मान सम्मान व आज्ञा को ईश्वर की अनुमति के बराबर माना जाता था। आज वही सम्मान खोता जा रहा है। जहां साधु-संतों को देखकर हमारे मन में आस्था का ज्वार उठ खड़ा होता था। वही अब हमें पाखंड नजर आता है। पहले हर घर में बच्चे अपने दादा दादी के पास बैठ कर पूजा-अर्चना करना सीखते थे ।दिन की शुरुआत सूर्य को जल चढ़ाकर संध्या की आरती पूरा परिवार मिलकर करता था। भोजन के समय सभी परिवार के लोग एक साथ आसन बिछाकर भोजन करते थे। उस से पूरा परिवार एक जगह मिलकर बात करता था। वही सब आज विपरीत हो रहा है ।कुछ तो लोगों की व्यस्तता के कारण और कुछ असभ्यता के चलते। बच्चा जैसे-जैसे अपनी पढ़ाई वह भविष्य को उज्जवल बनाने मैं व्यस्त हो गया वह अपने संस्कार आचरण व परंपराओं को भूल रहा है। हमारे भारत में जहां हर एक दिन विशेष त्योहार है धार्मिक क्रियाओं से जुड़ा होता था ।वही आज घरों में यह मालूम नहीं होता कि हिंदी महीने की कौन सी तिथि है। इतना ही नहीं किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति क्यों न हो वह अपने शिष्टता व आचरण की सीमा उलाहंगे जा रहा है। मानो शिष्टाचार की पोशाक उतार कर फेंक दी हो ।उम्र में बड़ों का आशीर्वाद जहां पैर छूकर व प्रणाम करने की पद्धति थी। वही घुटने तक ही छू कर रह गई। प्रणाम करके व्यक्ति आशीर्वाद में अपने बुद्धि बल और यश को प्राप्त करता था वही अपयश अपकीर्ति की ओर जा रहा है। एक समय था जब बड़ों के आशीर्वाद में दीर्घायु का आशीर्वाद मुंह से निकलता था। लेकिन आज कोई अपने से बड़ों को पैर छूकर आशीर्वाद लेना ही नहीं चाहता जल्दबाजी के चलते घुटनों तक ही प्रणाम रह जाता है। फिर कहां से दीर्घायु प्राप्त होगी भारतीय संस्कारों व पद्धतियों के पीछे भी वैज्ञानिक कारण छिपे हैं कोई यूं ही यह सब क्रियाएं नहीं चली है। वैज्ञानिक आज जिन खोजों में लगे हैं वे खोज हमारे भारत में हजारों साल पहले ही हो चुकी है देर है तो सिर्फ उन्हे जानने की, प्रणाम की पद्धति में भी वैज्ञानिक कारण छिपा है बड़ों के पैरों को छूने से उनके तेज व शक्ति का समावेश पैर छूने वाली व्यक्ति में होता है। आत्मीयता बढ़ती है। न जाने और कितने ही रहस्य हमारे भारतीय संस्कारों व पद्धतियों में छिपे है। पश्चिमी देशों ने हमारी भारतीय संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया है और हम लोगों ने उसी संस्कृति , सभ्यता से दूरी बनाना शुरू कर दिया है। तो क्यों न पुनः इसे अपनाकर हम अपने व बच्चों के संस्कार में वृद्धि करें और उनके उज्जवल भविष्य की नींव रखें।