वर्तमान शिक्षा प्रणाली निराशा पैदा करती है। विद्यालयों में केवल शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। शिक्षक केवल पाठ्यक्रम पूरा करने की औपचारिकता करते हैं। और बच्चे उसे रट्टू तोता बन कर याद करने में लगे रहते हैं। विषय की पूर्ण जानकारी शिक्षक देना ही नहीं चाहते। ऐसे छात्र क्या भविष्य के आदर्श शिक्षक बन पाएंगे? हर साल विद्यालयों में पाठ्यक्रम में वृद्धि कर दी जाती है, लेकिन वह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के जीवन में कितना काम आएगा, इस बारे में कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता। शिक्षक को शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को आदर्श नागरिक बनने की प्रेरणा देनी चाहिए, लेकिन शिक्षक स्वयं ही भटके हुए नजर आते हैं। इसलिए विद्यार्थी भी परीक्षा पास करने व डिग्री लेने की जुगत में लगे रहते हैं। शिक्षक को अपने उत्तरदायित्व को निभाने की तरफ ध्यान देना चाहिए। माना कि शिक्षा रोजगार का साधन है लेकिन देखा जाए तो इसे रोजगार ही बना लिया। शिक्षा का जो मूल उद्देश्य होना चाहिए वह विद्यालयों में मानव गायब ही हो गया। इस आधुनिकता के चक्कर में विद्यालयों में शिक्षा की गहराइयों में न जाकर विद्यालयों के बाहरी आवरण को संवारने में लगे हैं। हमारा देश वैदिक देश रहा है, आश्रमों में गुरुकुल में इतनी सहजता और सरलता से वेद किताबों के साथ व्यवहारिक व सांसारिक ज्ञान दिया जाता था। जिससे वह विद्यार्थी अपनी हर कदम पर सफल होता था। बड़ा दुख होता है हम सब यह जानते हुए भी कि हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली क्या रही थी और उसे क्या बना दी। धन के लालच में शिक्षा बिक रही है उसका सदुपयोग नहीं हो रहा। देखने में आ रहा है विदेशों में हमारी शिक्षा नीति को और हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं। क्योंकि जो उन्हें अपनी शिक्षा में कमी लगी वह हमारी देश की शिक्षा में मिला। उन्होंने यह महसूस किया कि किताबों से विषय की डिग्री तो मिल सकती है लेकिन विषय का ज्ञान होना अति आवश्यक है यही बात हम भूल बैठे हैं। सिर्फ और सिर्फ बच्चों को रट्टू तोता बनाकर एक क्लास से दूसरी क्लास में बैठा देना ही शिक्षा नहीं होती। यह बड़ी ही चिंता का विषय
बन गया है आज की। शिक्षा से बच्चों का भविष्य नहीं बिगड़ रहा बल्कि देश का भविष्य बिगड़ रहा है।