बाबू जी क्या बात हैं? किस गहन मुद्रा में डूबे हों, क्या मंथन चल रहा हैं? दूध कब का उबल गया है और पूरा दूध जलकर मलाई बन चुका हैंl जरा साइड में हटिए, मैं किचन स्लैब और गैस स्टोव साफ कर दू। अगर मेम साहब आ गई तो खामखा आसमान सिर्फ पर उठा लेंगी और गुस्से में बड़बड़ायेंगी, काम के ना काज के, दुश्मन अनाज के, बनते हो सेवक समाज के। दूध का नुक्सान पचास रुपये का और पूरा दिन सबका मूड खराब हो जाएगा। छौटे भैया और मुझे ही मेम साहब के गुस्से को सातवे आसमान से धरा पर लाने के लिए अनगिनीत पापड़ बेलने पडेंगे, आप तो सब कुछ भुलाकर काम में व्यस्त हो जाओगे या कुछ लिखने बैठ जाओगे, जैसे कुछ हुआ ही नहीं!
भोली (स्थायी, वफ़ादार गृहसहायिका या पारिवारिक सदस्य समकक्ष), मैं दूध की भौतिक स्थिति परिवर्तित होते देख रहा था और दूध से मलाई में रूपांतरण की प्रक्रिया के दौरान होने वाली असहनीय पीड़ा और कठिनाइयाँ का विश्लेषण भी कर रहा था।
दूध का मलाई में परिवर्तन होना कितना कष्ट- दायक होता हैं, जो सिर्फ दूध ही जानता है या सिर्फ मैं ही अनुभव कर सकता हूं, क्योंकि मैं ऐसी सभी कष्टदायक परिस्थितियों से अनेको बार दो-चार हाथ कर चुका हूं।
दूध स्वयं इस बात से अनभिज्ञ हैं कि दूध से मलाई बनने की प्रक्रिया में उसे असीमित दर्द और कठिनाईयों का सामना करना पड़ा हैं, लेकिन मलाई बनने के सुखद आत्मिक अहसास में सभी कष्टदायक पीड़ाये उसके दिलोदिमाग से कब की छूमंतर हो चुकी हैं और वह नई चुनौतियों से लोहा लेने के लिए नई स्फूर्ति और जोश के साथ फ़िर से तत्पर हैं।
दुध ने अपार गर्मी और तपन को सहन किया सिर्फ मलाई बनने के लिए, कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा के चलते दूध ने अपने वास्त्विक स्वरूप (दूध) का त्याग करना भी स्वीकार किया। अवसर पाते ही एकाएक बादाम, केसर, इलाइची भी मलाई अभियान में कुद पडेंगे ताकि सफलता का सेहरा उनके माथे पर पहले सजे। दूध का नामकरण भी हो जाएगा, बादाम दूध, केसर दूध और इलाइची दूध। सभी बादाम, केसर और इलायची का ही महिमामंडन करेंगे और सारा का सारा श्रेय उनको ही मिलेगा तथा दूध के संघर्ष और बलिदान को कोई ठीक से याद भी नहीं करेगा।
मलाई बनने के बाद मक्खियां भी अपना हिस्सा वसुलने में तनिक भी विलम्ब नहीं करेंगी।वास्तविक जीवन में वो सभी अवसरवादी सहकर्मी, मित्र, परिचित, व्यावसायिक साझेदार और रिश्तेदार मक्खी का ही प्रारूप होते हैं, जो अच्छे समय में मलाई खाने से तनिक भी नहीं हिचकिचाते, चाहे उन्होंने कठिन समय में कभी किसी प्रकार की कोई मदद भी नहीं की हो या विपरीत समय या संघर्ष के समय में कभी सुध लेना भी अपना उत्तरदायित्व समझा हो।
हाँ बाबूजी मैं भली-भांति जानती हूं कि आपने इस सफल मुकाम तक पहुंचने के लिए सच में कमर तोड़ परिश्रम किया है। ना दिन देखा, ना रात, खुन-पसीना एक कर दिया परंतु कभी उफ तक नहीं की। ना किसी से कोई गिला-शिकवा, बस अकेले लगे रहे, कभी किसी की कोई परवाह नहीं की। अपने आत्म विश्वास, लगन और मेहनत के बलबूते इतनी कंपनियों का साम्राज्य स्थापित कर दिया और बखुबी संचालन भी कर रहे हो। लगभग दो सौ लोगो को रोजगार प्रदान कर उनके परिवार का जीवनयापन भी अच्छे से कर रहे हो। बाबू जी मैंने भी आपके जिंदगी के सभी उतार चढ़ाव देखे हैं और आपकी जिंदगी के सफलता विफ़लता और के सफर में हर क्षण साक्षी भी रही हूं।
भोली तूने आज बीती हुई जिंदगी की किताब के धूमिल पन्नो को ना चाहते हुए भी यकायक आईने की तरह साफ कर दिया जिन्हे वक्त रूपी चादर कब की ढक चुकी थी। सारे घटित वाक्ये एक के बाद मेरे दिमाग में तरो ताजा हो गए हैं।
पच्चीस साल पलक झपकते कैसे बीत गए, कोई नहीं जानता? एक सपना जैसा लगता हैं।जब समय का पहिया अनुकूल दिशा में चलता हैं तो वक्त पलक झपकते ही उड़ जाता हैं और जब यही समय का पहिया प्रतिकुल दिशा में चलता हैं या सितारे गर्दिश में हो तो एक-एक पल कटना बड़ा मुश्किल होता हैं, या यूं कहें कि एक-एक क्षण पहाड़ जैसा लगता हैं। मुझे अच्छी तरह याद हैं जब शूरुआती दिनो में मैं अपना छोटा सा व्यवसाय स्थापित करने के लिए अकेले ही संघर्ष करता था, शरीर थकावट से कितना भी टूटे, चाहे कोई छोटी-मोटी बीमारी हो, न कभी आराम, ना कोई विराम, सिर्फ काम ही काम। चाहे कोई परिवार का सदस्य या व्यवसायिक साथी, मित्र कोई मदद करे या ना करे, सिर्फ अकेले ही अपने काम में मशगुल रहा। सिर्फ एक ही धुन सवार थी कि दुनिया को कुछ करके दिखाना हैं, कुछ अलग हट के। धैर्य रखा कि आज नहीं तो कल सफलता रूपी मंज़िल अवश्य कदम चुमेगी। सिर्फ अपने आत्म-विश्वास, लगन , मेहनत से लोगो का विश्वास जीता और उसी के बलबुते पर आज एक छोटी सी कंपनी से कितनी कम्पनिया स्थापित हो गई, मुझे स्वयं पता नहीं कि कितनी कम्पनिया मेरे नाम पर, कितनी पत्नी और कितनी बच्चों के नाम पर हैं।
हकीकत में मलाई का नियम जीवन के हर एक क्षेत्र में शत प्रतिशत लागू होता हैं, चाहे वह सरकारी सेवाएं हों, प्राइवेट सेवाएं हों, कॉर्पोरेट सेवाएं हों या सामाजिक क्षेत्र, घरेलू क्षेत्र, यहां तक कि रक्षा सेनाओं में भी यही नियम पूर्णतया लागू होता हैं। बीस-पच्चिस प्रतिशत लोग अपने संगठन की सफलता के लिए ईमानदारी, लगन, समर्पण और निष्ठा के साथ निरंतर कोल्हू के बैल की तरह काम में जुटे रहते हैं लेकिन चालीस-पचास प्रतिशत लोग जरूरत से ज्यादा से चालाक व अवसरवादी होते हैं जो आखिरी समय में चलते हुए अभियान में कूद पड़ते हैं और बड़ी चतुराई से सफलता का ताज अपने माथे पर सजाने में माहिर होते हैं। जिन लोगों ने शुरूआती दौर से अनवरत संघर्ष किया है, उन्हें भुला दिया जाता है या सफलता का उचित श्रेय उन्हें कभी नहीं दिया जाता हैं। पच्चिस प्रतिशत
लोग मक्खी जैसे होते हैं जो बगैर किसी उचित योगदान के समुचित मलाई खाने की ही ताक में रहते हैं। यही हमारे आधुनिक समाज का कटू सत्य भी है जिसे हम सबको मजबूरन स्वीकार करना ही पड़ता हैं।