आदिवासियों के महाकुंभ बेणेश्वर धाम में पहली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आगमन

आदिवासियों के महाकुंभ बेणेश्वर धाम में पहली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आगमन

बेणेश्वर धाम का अपना सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्व है। यहां की तपोभूमि में संत मावजी महाराज को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहां पर हर साल माघ महीने की एकादशी को राष्ट्रीय स्तर का मेला भरता है। इस मेले में करीब दस से अधिक लोग विभिन्न राज्यों से आते हैं। मावजी महाराज ने करीब 300 वर्ष पूर्व माही, सोम और जाखम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी। इनके द्वारा जनजाति समाज (आदिवासी) में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए। उनकी याद में हर वर्ष बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है।

संत मावजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी), बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसरबाई की कोख से हुआ। इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल ग्यारस को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए। मावजी महाराज ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक एवं सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की हैं, जिन्हें मशहूर नास्त्रोदमस से भी सटिक भविष्यवाणी आज भी लागू हो रही है। संत मावजी महाराज से आज से करीब 270 साल पहले अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि ‘गऊं चोखा गणमा मले महाराज’ अर्थात गेहूं-चावल राशन से मिलेंगे।

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