वैश्य आर्य कन्या महाविद्यालय के हिंदी विभाग में मंच के माध्यम से हुआ विस्तार व्याख्यान का आयोजन।

वैश्य आर्य कन्या महाविद्यालय के हिंदी विभाग में मंच के माध्यम से हुआ विस्तार व्याख्यान का आयोजन।

वॉइस ऑफ़ बहादुरगढ़ न्यूज़ वैश्य आर्य कन्या महाविद्यालय, बहादुरगढ में वर्तमान युग में संत साहित्य की प्रासंगिकता विषय पर विस्तार व्याख्यान का आयोजन किया गया। उक्त व्याख्यान अभावी मंच गूगल मीट के माध्यम से किया गया जिसमें देश के जाने माने भाषाविद् प्रोफेसर नंद किशोर पांडे जी, अध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की। इस संदर्भ में महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ0 राजवंती शर्मा जी ने जानकारी देते हुए बताया कि संत साहित्य कल भी प्रासंगिक था और आज भी प्रासंगिक है व आने वाले समय में भी इसकी प्रासंगिकता कम नहीं हो सकती। संत साहित्य हमें न केवल मिल जुल कर रहना सिखाता है बल्कि हमें जाति-धर्म संप्रदाय व क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर देश हित में भी जीना सिखाता है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर नंदकिशोर जी द्वारा दिया गया व्याख्यान छात्राओं का मार्गदर्शन करेगा व छात्राएं जीवन मूल्यों से रूबरू होंगी।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर नंद किशोर पांडे जी ने संत साहित्य की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह एक ऐसा युग था जिसमें भारत के प्रत्येक जाति व धर्म से संतों का आविर्भाव हुआ। इन संतों की वाणी भले ही भक्ति काल में गुंजी थी मगर उसकी अनुगूंज हमेशा सुनाई देती रहेगी और समाज का मार्गदर्शन करती रहेगी। यह योग समन्वय वादिता का युग था जिसमें दलित संतों के ब्राह्मण, बनिया आदि उच्च वर्ग के शिष्य थे, तो उच्च वर्ग के गुरुओं से कबीर व रैदास जैसे संतों ने शिक्षा ग्रहण की। अतः जातिवाद, धर्म-वाद से ऊपर उठकर राष्ट्र को एकजुट करने का प्रयास सच्चे अर्थों में भक्ति साहित्य में हुआ।

कार्यक्रम संयोजिका डॉ मनजीत ने मंच संचालन करते हुए कहा कि इस प्रकार की व्याख्यानां के आयोजन से छात्राओं को न केवल नई ऊर्जा प्राप्त होती है बल्कि वह विषयों की गूढ जानकारी भी प्राप्त करती है और फिर बात साहित्य की हो तो कहना ही क्या। साहित्य हमें जीवन मूल्य प्रदान करता है। किसी भी विषय का विद्यार्थी हो वह साहित्य से अछूता नहीं रह सकता। कार्यक्रम को सफल बनाने में श्रीमती सीमा देवी, प्राध्यापिका हिंदी विभाग, श्रीमती शिखा तिवारी व श्रीमती नेहा रोहिल्ला आदि की अहम भूमिका रही।

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