चांद के पार चलो

चांद के पार चलो

वॉइस ऑफ़ बहादुरगढ़ न्यूज़ बहादुरगढ़


चांद के पार चलो

नाउम्मीदी का सफ़र हौसलों से पार करो,
चांद के पार चलो।
है अंधेरे का कहर जुगनू भी ले साथ चलो,
चांद के पार चलो ।

वह जो होना, जब होना, होनी तो होनी है ,
क्यों हुआ? कब हुआ? के प्रश्न से उबार चलो,
चांद के पार चलो ।

वक्त के जख्म करवटों के ताल पर थिरके,
कफ़न में दफन कल, आज का दीदार करो ,
चांद के पार चलो ।

इश्क के रब ने कहा तुम ना कभी समझोगे ,
लफ्ज़ खुद बोलेंगे, पढ़ना है तो एहसास पढ़ो ,
चांद के पार चलो।

ग्रह – नक्षत्र रहे उलझे नाम पाने में,
देश की शान आसमां पे लिख आया इसरो,
चांद के पार चलो।

भूलें रिश्तो में नए दौर की रवानी हो,
मां ने प्रज्ञान भेजा मामा की कलाई को,
चांद के पार चलो।

नानी दादी की कहानी में जहां घूमें ‘हिना’ ,
आज विज्ञान भी ले आया चंद्रयान चढ़ो ,
चांद के पार चलो।

स्वरचित एवं मौलिक रचना
अर्चना झा ‘ हिना ‘बहादुरगढ़ हरियाणा

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