वॉइस ऑफ़ बहादुरगढ़ न्यूज़ बहादुरगढ़
माफ़ करना भाई साहब… आप थोड़ा अपनी वाणी को विराम देने की कृपा करेंगे… जब से आप आये हैं तब से आपकी वाणी दुरंतो एक्सप्रेस की स्पीड से नॉन-स्टाप बके जा रही हैं। थोड़ा समय, स्थान और अवसर का ध्यान रखते हुए लोक-मर्यादा में रहकर वार्तालाप कीजिये, ताकि आपके व्यवहार में सभ्यता, संस्कार और शालीनता की थोड़ी झलक दिखे। सभी अपने बच्चों को अपनी हैसियत अनुसार पढा-लिखा कर इस काबिल बनाते हैं कि वह अपने पैरो पर खड़े होकर ईमानदारी से अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटा सके और परिवार के साथ सुकून की जिंदगी बिता सके।
आपको स्मरण रखना चाहिए कि आप अपने दिवंगत चचेरे भाई की अंत्येष्टि में शामिल हो कर श्रद्धांजली देने आये हैं। आपको चाहिए था कि आप उनकी पत्नी, बच्चे और शौकसंतप्त परिवार का दुख की घड़ी में साथ खड़े होकर उनके दुःख-दर्द में हाथ बटाकर सहानुभूति प्रकट करते और दिवंगत पुण्यात्मा के लिए श्रद्धा से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते। लेकिन आपने ने तो ठान ली हैं कि आप सभी महमानो के बीच अपनी संपत्ति, मोटर गाडी, फ्लैट्स, प्रॉपर्टी, जमीन-जायदाद और बच्चों का विदेश में शिक्षा ग्रहण करना और वहाँ स्थापित होकर उनके द्वारा अर्जित संपत्ति का ही महिमामंडन करेंगे। लगता हैं आप शोक सभा की मर्यादा को ताक पर रख कर यथाशक्ति अपने लौकिक संपत्ति और धन के अहम् का ही प्रदर्शन करने आये हैं।
अक्सर बहुत से लोगों को इस प्रकार की चर्चा विवाह समारोह, अंत्येष्टि या अस्पताल में करते देखा गया हैं, जब वो किसी रिश्तेदार या परिचित को मिलने जाते हैं। ऐसी मनोवृत्ति के लोग अक्सर अपनी धनार्जित सम्पत्ति और परिवार को थोथी शौखी बघारते नही थकते और अपने अहम का बेहयात प्रदर्शन करते हैं। उन्हें दूसरे के सुख-दुख में शामिल होने में कोई विशेष रुचि नहीं होती, लोकलज्जा के कारण उन्हें ऐसे फंक्शन में आना पड़ता हैं लेकिन अपनी सम्पत्ति के अहम् के कारण अपनी ही दीन-दुनिया में खोये रहते हैं।
दुसरी तरफ अधिकतर धनलोलुप लोग कोल्हू के बैल की तरह कमाई में जूटे रहते हैं और वहम् के अंधसागर में डूबे रहते हैं। सारी जिंदगी कंजूसी करके बचाते हैं। यहां तक कि पैसे बचाने के चक्कर में अपने व परिवार के शौक, इच्छाओ एवं फरमाइश्यो की बली चढ़ाने से नहीं हिचकिचाते, ताकि कल के लिए कुछ बचाया जा सके और भविष्य तथा बुढ़ापा चैन, आरामदायक व आनंदमय तरीके से गुजर जाये। कुछ लोगो की धारणा हैं कि संचित धन उनकी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो। यह भी भूल जाते हैं कि अधिक धन कमाने के चक्कर में वो अपनों से बहुत दूर हो जाते हैं। मुसीबत और अंत समय में धन दौलत, महल, संपदा रखी रह जाती हैं। काम आते हैं सिर्फ नजदीकी पड़ोसी और हमदर्द मित्र यदि आपने उनके लिए कुछ अच्छा किया हैं और आपने सभी के साथ मधुर व सौहार्दपूर्ण व्यवहार बनाए रक्खा हैं। क्योंकि स्मरण रखना चाहिए की सगे- सम्बन्धी, परिचित और विदेश में नौकरी करने वाले बेटे-बेटियां, भाई-बहन किसी भी तरह की त्रासदी और अनचाही आकस्मिक अवश्यक्ता के समय आप तक तुरंत नहीं पहुंच सकते हैं और ना ही तिजोरी में रखी अकुट संपत्ति आपकी कोई मदद कर सकती हैं। इसलिये मन से ये वहम निकाल फैंकिये कि जमार्जित धन संपदा आपके बुरे समय में काम आएगी। बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रूपया वाली फिलॉसफी को भूल जाए, जरूरी नहीं कि आपकी धन-संपदा आपके बुरे समय में निश्चित रूप से काम आएगी। इसलिए सुनहरे कल के सपनों को साकार करने के भ्रम में, अपने व परिवार के सुनहरे वर्तमान को ठोकर मत मारिए। सिर्फ एक हसरत रखिए, जनाब अपनों के साथ रहने की वरना पता सबको हैं कि अंतिम यात्रा के मुकाम पर अकेले ही जाना हैं। बुरे वक्त में जीवनयापन के पैसा बचाकर रखना व आत्मनिर्भर रहना समझदारी है। हर किसी को अपने तरीके से अपने जीवन का भरपुर आनंद लेना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके साथ जुड़े अन्य लोग भी खुशी का आनंद लें, तभी मानव जीवन सार्थक हैं।
कर्म के बीज अच्छे हों या बुरे, उचित समय पर पेड़ बनकर फल जरूर देते हैं, इसलिए अच्छे कर्म करते रहो। हमेशा याद रखे की शक्कर को चाहे अंधेरे में खाएं या उजाले में, मुँह मीठा ही होता हैं। उसी प्रकार अच्छे कर्मों को हम अनजाने में भी करें, तो भी उसका फल मीठा ही होगा।
समय, सत्ता, संपत्ति और शरीर चाहे साथ दे या ना दे, लेकिन स्वभाव समझदारी और सच्चे संबंध हमेशा समय पर साथ देते हैं। इसलिए जो प्राप्त है, वह पर्याप्त हैं, हँसते रहें, हँसाते रहें, स्वस्थ रहें, सकारात्मक रहें, सावधान होकर व्यस्त रहें और मस्त रहें।
चेहरे पर मौजूद मुस्कान मानव हृदय की मधुरता को दर्शाती है और शांति बुद्धि की परिपक्वता को और दोनों का ही होना मनुष्य की संपूर्णता को दर्शाता हैं। इसलिए विभिन्न प्रकार के अहम् और वहम् का परित्याग करके जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलकर मुस्कुराते हुए शांति के साथ संपूर्ण जीवन का भरपुर आनंद लें।
जय हिंद, वंदे मातरम्.
डिप्टी कमांडेंट ओम प्रकाश नारंग (सेवानिवृत्त)