स्त्री तू महान है

स्त्री तू महान है

वॉइस ऑफ़ बहादुरगढ़ न्यूज़ बहादुरगढ़

कितनी आसानी से एक
नारी को अबला और कमजोर कह दिया जाता है ।यह जानते हुए भी कि नारी उसके घर को भी संभाल सकती है तो देश को संभालने का भी जज्बा रखती है। बस कमजोर होती भी है तो अपने परिवार व समाज की खुशी वह इच्छा के लिए इतना ही नहीं मनुष्यों में एक स्त्री को ही ईश्वर ने ऐसी शक्ति दी है जिससे वह जीत कर भी हार को अपना लेती है ।केवल अपने परिवार को खुश रखने के लिए। स्त्री भी हर गलत के खिलाफ लड़ना जानती है ।उसका विरोध करने की ताकत रखती है। लेकिन सदियों से स्त्री यही सोचती है मेरा घर परिवार खुश रहे। शास्त्रों में लिखा है” यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता” यानी जिस घर में स्त्री का मान सम्मान होता है उसे प्रेम दिया जाता है उस घर में देवताओं का निवास होता है। समय के साथ बहुत परिवर्तन भी समाज में हो रहा है। स्त्रियां उचित -अनुचित बात पर बोलने लगी है। अपने आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचने देती, अपने आप को आत्मनिर्भर बना रही है। यह कोई गलत नहीं है। अगर इतिहास उठा कर देखे तो हमारे भारतीय इतिहास में महान विदुषी स्त्रियां, रानियां हुई है। रानियों ने राज पाठ संभाले हैं ।औरतों को घर में कैद रखना, उनका बोलना गलत मानना, पर्दे में रखना मुगलों के शासन के बाद हुआ है। जिसे हमने संस्कार का नाम दे दिया है ईश्वर ने भले ही स्त्री को बाहरी आवरण से कोमल बनाया है लेकिन किसी भी प्रकार के कष्ट को सहने के लिए उतना ही अंदर से कठोर बनाया है। तो स्त्री को कमजोर वह गलत समझने से पहले उसको स्वयं को समझने की कोशिश करें।
कविता-
हर रोज एक नया चेहरा लेकर उठती हूं।
बीती शाम की सारी बातें भुला कर उठती हूं।
मां हूं, बहू हूं, पत्नी हूं। बस यही याद रख पाती हूं।
सपने सारे अपने दिल में दबा कर उठती हूं।
अपने लिए कुछ सोच भी लेती हूं
तो सब को सोच कर कर नहीं पाती हूं।
दिनभर की दौड़ धूप और वो भी बिना मेहनताना के सबकी चिंता में उठ जाती हूं।
मैं एक गृहिणी हूं यही याद रख पाती हूं।

शिक्षिका- विद्यावती शर्मा

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